भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर जनम दिन पर / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 7 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर जनम दिन पर अपना वज़न देखिए।
अपने जीवन का भी, बाँकपन देखिए।

उनकी दौलत, न सूरत, न तन देखिए,
देखना है अगर उनका मन देखिए।

ख़ौफ़, दहशत की फैली हवा हर तरफ़,
सांस लेने से पहले पवन देखिए।

आप कितना उठे ख़ुद में और ग़ैर में,
और कितना हुआ है पतन देखिए।

देश भक्ति का दिल में है जज़्बा अगर,
अपना किस राह पर है वतन देखिए।

सीख देते हैं जो गीता कुरआन की,
उनका कैसा है पहले चलन देखिए।

मुख़्तसर बात इतनी-सी ‘प्रभात’ है
है ज़माना बहुत पुरफ़तन देखिए।