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"हर तरफ़ जाले थे, बिल थे / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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हर तरफ़ जाले थे, बिल थे, घों‍सले छ्प्पर मे‍ थे  
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हर तरफ़ जाले थे, बिल थे, घों‍सले छ्प्पर में थे  
जाने कितने घर मेरे उस एक कच्चे घर मे थे ।
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जाने कितने घर मेरे उस एक कच्चे घर में थे ।
  
 
दस्ते-शहज़ादी से नाज़ुक कम न थे दस्ते-कनीज़  
 
दस्ते-शहज़ादी से नाज़ुक कम न थे दस्ते-कनीज़  
एक मे मेहंदी रची थी, इक सने गोबर मे थे ।
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एक में मेहंदी रची थी, इक सने गोबर में थे ।
  
हारने के बाद मै यह देर तक सोचा किया  
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हारने के बाद मैं यह देर तक सोचा किया  
सामने दुशमन थे मेरे या मेरे लशकर मे थे ।
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सामने दुशमन थे मेरे या मेरे लशकर में थे ।
  
चन्द सूखी लकडियाँ, जलती चिता, ख़ामोश राख
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चन्द सूखी लकड़ियाँ, जलती चिता, ख़ामोश राख
जाने कितने ख़ुश्क मंज़र उसकी चश्मे-तर मे थे ।
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जाने कितने ख़ुश्क मंज़र उसकी चश्मे-तर में थे ।
  
हर मे हर आदमी इक बार सोचेगा ज़रूर
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हर में हर आदमी इक बार सोचेगा ज़रूर
मर के हम महशर मे है या जीते जी महशर मे थे ।
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मर के हम महशर में है या जीते जी महशर में थे ।
  
 
बर्क, अंगडाई , घटाएँ, ज़ुल्फ़, आँखें झील-सी  
 
बर्क, अंगडाई , घटाएँ, ज़ुल्फ़, आँखें झील-सी  
कितने मंज़र एक तेरे दीद के मंज़र मे थे ।
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कितने मंज़र एक तेरे दीद के मंज़र में थे ।
  
 
आजकल तो आदमी में आदमी मिलता नही  
 
आजकल तो आदमी में आदमी मिलता नही  
 
पहले सुनते थे कि ’बेख़ुद’ देवता पत्थर मे थे ।
 
पहले सुनते थे कि ’बेख़ुद’ देवता पत्थर मे थे ।
 
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07:43, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

हर तरफ़ जाले थे, बिल थे, घों‍सले छ्प्पर में थे
जाने कितने घर मेरे उस एक कच्चे घर में थे ।

दस्ते-शहज़ादी से नाज़ुक कम न थे दस्ते-कनीज़
एक में मेहंदी रची थी, इक सने गोबर में थे ।

हारने के बाद मैं यह देर तक सोचा किया
सामने दुशमन थे मेरे या मेरे लशकर में थे ।

चन्द सूखी लकड़ियाँ, जलती चिता, ख़ामोश राख
जाने कितने ख़ुश्क मंज़र उसकी चश्मे-तर में थे ।

हर में हर आदमी इक बार सोचेगा ज़रूर
मर के हम महशर में है या जीते जी महशर में थे ।

बर्क, अंगडाई , घटाएँ, ज़ुल्फ़, आँखें झील-सी
कितने मंज़र एक तेरे दीद के मंज़र में थे ।

आजकल तो आदमी में आदमी मिलता नही
पहले सुनते थे कि ’बेख़ुद’ देवता पत्थर मे थे ।