भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर नई रुत के साथ पलटेगी / चिराग़ जैन

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:23, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (चिराग़ जैन की ग़ज़ल)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर नई रुत के साथ पलटेगी
ख़ुश्बू-ए-क़ायनात पलटेगी।

ये सियासत है इस सियासत में
एक प्यादे से मात पलटेगी।

किसकी बातों का क्या यकीन करें
पीठ पलटेगी बात पलटेगी।

रंग परछाई तक का बदलेगा
सुब्ह होगी तो रात पलटेगी।

तुम संभल कर बस अपनी चाल चलो
इक न इक दिन बिसात पलटेगी।

वक्त ज़ब-जब भी करवटें लेगा
ज़िन्दगी साथ-साथ पलटेगी।