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हर मुख पे हो मुस्कान तो समझो वसन्त है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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हर मुख पे हो मुस्कान तो समझो वसन्त है
अधरों पे हो मधुगान तो समझो वसन्त है।

हर दिल में हो बहता हुआ दरिया उमंग का
मचलें बहुत अरमान तो समझो वसन्त है

बेताब हों छूने के लिए मन बुलन्दियाँ
उम्मीद हो जवान तो समझो वसन्त है

दो घँूट जो पानी के लिए तरसते हो होंठ
उनको मिले रसपान तो समझों वसन्त है

नफ़रत में नहीं प्यार में ईश्वर का है निवास
ले जान हर इन्सान तो समझ वसन्त है

सन्देह तो रिश्तो में है पतझार का ही नाम
विश्वास हो दरम्यान तो समझो वसन्त है

पाकरसमानता का पद महलों के बीच में
कुटिया भी करे मान तो समझो वसन्त है

चाहत का एक सा हो रंग दिल-जुबान पर
हों एक दिलो-जान तो समझो वसन्त है

रहमान और राम में कोई नहीं है फ़र्क
यह तथ्य लें सब जान तो समझो वसन्त है

पीड़ी से अगर प्यार का हो जाय गठबंधन
हो मुश्क़िलें आसान तो समझो वसन्त है