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हवा से दिल लगाता है / बनज कुमार ’बनज’
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हवा से दिल लगाता है।
वो तिनका दूर जाता है।
नहीं जिसके क़दम रुकते,
वही रस्ता बनाता है।
पलक के बाल उलझे हों,
तो दर्पण जी चुराता है।
हमें अब गाँव की हालत,
बताने कौन आता है।
नदी की सच बयानी से,
समन्दर तिलमिलाता है।
अगर मैं भीड़ होता हूँ,
तो सन्नाटा बुलाता है।
बनज के पेड़ से कोई,
परिन्दों को उड़ाता है।