हसीन ख़ुद को शाम से जवां सहर से देखिए / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
हसीन ख़ुद को शाम से जवां सहर से देखिए ,
कि आप अपने आप को मेरी नज़र से देखिए !
जो देखने को आपको मेरे कदम रुके तो क्या ,
कि रास्तों के रास्ते गए ठहर - से देखिए !
जो जानना ये आपको कि है जुनून क्या बला ,
तो रात-रात घर मेरा फिर अपने घर से देखिए !
किसी उफ़नती मौज-सा ये आपका शबाब है ,
कि रेत के कई किले गए बिखर से देखिए !
अब आइने में आपका ये अक्स आप तो नहीं ,
अगर है ख़ुद को देखना तो फिर जिगर से देखिए !
पलट-पलट न देखिए यूँ आप अपने आप को ,
गुलाब बस गुलाब है उसे जिधर से देखिए !
यकीन मुझ पे जो नहीं कि कौन सब से है हसीं ,
तो आप ख़ुद ही पूछ कर ज़माने भर से देखिए !