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हाइकु / कुँअर बेचैन

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[[Category:हाइकु]]
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'''वर्षा हाइकु'''जल चढ़ायातो सूर्य ने लौटाएघने बादल ।
आषाढ़ माहतटों के पासउगी मन-मोर मेंनौकाएं तो हैं,किन्तुनृत्य की चाह पाँव कहाँ हैं?
पहला मेहज़मीन परभीतर तक भीगीबच्चों ने लिखा'घर'गोरी की देहरहे बेघर ।
पहला मेहरहता मौनया प्रिय के मन सेतो ऐ झरने तुझे छलका स्नेहदेखता कौन?
हुई अधीरचिड़िया उड़ीमेघ ने छुआ जबकिन्तु मैं पींजरे मेंनदी वहीं का नीरवहीं !
देखे थे ख़्वाबओ रे कैक्टस भर दिए मेघों नेबहुत चुभ लियासूखे तालाबअब तो बस
भरे तालआपका नामपास खड़े पेड़ भीफिर उसके बादहैं खुशहालपूर्ण विराम!
लिक्खे सर्वत्र
आसुओं की बूँदों से
पेड़ों ने पत्र
जलतरंग
जल बना, तर भी -
बना मृदंग
 
ये नन्ही नाव
काग़ज़ में बैठे हैं
बच्चों के भाव
 
पूरा आकाश
दे गया कृषकों को
जीने की आश
 
छतरी खुली
छूट रही हाथ से
ये चुलबुली
 
भीगी सड़क
फिसल मत जाना
ओ बेधड़क
 
चौपालों पर
गूँज उठे हैं ऊँचे
आल्हाके स्वर
 
इंद्रधनुष
बिखरा कर रंग
कितना खुश
 
पानी की प्यास
धरा हो या गगन
सबके पास
</poem>