भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 11-20/ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:37, 15 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }} [[Catego...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

11
व्याकुल गाँव
व्याकुल होरी के हैं
घायल पाँव ।
12
कर्ज़ का भार
उजड़े हुए खेत
सेठ की मार ।
13
बेटी मुस्काई
बहू बन पहुँची
लाश ही पाई ।
14
यह जनता
मेले में गुमशुदा
अबोध शिशु
15
नई सभ्यता
आंगन में उगाते
हैं नागफनी
16
दाएँ न बाएँ
खड़े हैं अजगर
किधर जाएँ ।
17
लूट रहे हैं
सब पहरेदार
इस देश को
18
मौत है आई
जीना सिखलाने को
देंगे बधाई ।
19
मैं नहीं हारा
है साथ न सूरज
चाँद न तारा ।
20
साँझ की बेला
पंछी ॠचा सुनाते
मैं हूँ अकेला ।
-0-