"हाथ पे हाथ बुरी बात हटा ले कोई / विनय कुमार" के अवतरणों में अंतर
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वक़्त ने हाथ बढ़ाया है मिला ले कोई।<BR><BR> | वक़्त ने हाथ बढ़ाया है मिला ले कोई।<BR><BR> | ||
− | ओस के धोखे में सूरज न क़त्ल कर दे मुझे | + | ओस के धोखे में सूरज न क़त्ल कर दे मुझे<BR> |
अश्क की बूंद हूँ पलकों पे सजा ले कोई।<BR><BR> | अश्क की बूंद हूँ पलकों पे सजा ले कोई।<BR><BR> | ||
− | फ़स्ले दीवार का मौसम है मुल्क में यारो | + | फ़स्ले दीवार का मौसम है मुल्क में यारो<BR> |
ज़िक्रे बर्लिन न हवाओं में उछाले कोई।<BR><BR> | ज़िक्रे बर्लिन न हवाओं में उछाले कोई।<BR><BR> | ||
− | एक के बाद एक घर तिलिस्म में तब्दील | + | एक के बाद एक घर तिलिस्म में तब्दील<BR> |
डालता जाता है दरवाज़ों पर ताले कोई।<BR><BR> | डालता जाता है दरवाज़ों पर ताले कोई।<BR><BR> | ||
− | अपने कंधे पे मुझे अर्थियाँ ढोनी होंगी | + | अपने कंधे पे मुझे अर्थियाँ ढोनी होंगी<BR> |
आज बंदूक शराफ़त से हटा ले कोई।<BR><BR> | आज बंदूक शराफ़त से हटा ले कोई।<BR><BR> | ||
− | वह खुले आम खोलता है खिड़कियाँ सच की | + | वह खुले आम खोलता है खिड़कियाँ सच की<BR> |
चलो बचाएँ उसे, मार न डाले कोई।<BR><BR> | चलो बचाएँ उसे, मार न डाले कोई।<BR><BR> | ||
− | तमाम रात रेशमी मकान में सोकर | + | तमाम रात रेशमी मकान में सोकर<BR> |
बेच लेता है सुबह पाँव के छाले कोई।<BR><BR> | बेच लेता है सुबह पाँव के छाले कोई।<BR><BR> | ||
− | अब इसे ढाल न पाएँगी कभी टकसालें | + | अब इसे ढाल न पाएँगी कभी टकसालें<BR> |
दिल चवन्नी है हिफ़ाज़त से संभालें कोई।<BR><BR> | दिल चवन्नी है हिफ़ाज़त से संभालें कोई।<BR><BR> | ||
− | सोच आँचों मे गले पर न ढले साँचों में | + | सोच आँचों मे गले पर न ढले साँचों में<BR> |
सोच को राह दे, साफ़ा न बना ले कोई।<BR><BR> | सोच को राह दे, साफ़ा न बना ले कोई।<BR><BR> | ||
− | जिस तरह आग मरे मुंह पे रखी जाती है | + | जिस तरह आग मरे मुंह पे रखी जाती है<BR> |
यूँ बुज़ुगों को खिलाए न निवाले कोई।<BR><BR> | यूँ बुज़ुगों को खिलाए न निवाले कोई।<BR><BR> | ||
− | कैसे बच्चों के सवालों को अनसुना कर दे | + | कैसे बच्चों के सवालों को अनसुना कर दे<BR> |
कैसे ख़ुद को करे माज़ी के हवाले कोई।<BR><BR> | कैसे ख़ुद को करे माज़ी के हवाले कोई।<BR><BR> |
18:49, 29 जुलाई 2008 के समय का अवतरण
हाथ पे हाथ बुरी बात हटा ले कोई।
वक़्त ने हाथ बढ़ाया है मिला ले कोई।
ओस के धोखे में सूरज न क़त्ल कर दे मुझे
अश्क की बूंद हूँ पलकों पे सजा ले कोई।
फ़स्ले दीवार का मौसम है मुल्क में यारो
ज़िक्रे बर्लिन न हवाओं में उछाले कोई।
एक के बाद एक घर तिलिस्म में तब्दील
डालता जाता है दरवाज़ों पर ताले कोई।
अपने कंधे पे मुझे अर्थियाँ ढोनी होंगी
आज बंदूक शराफ़त से हटा ले कोई।
वह खुले आम खोलता है खिड़कियाँ सच की
चलो बचाएँ उसे, मार न डाले कोई।
तमाम रात रेशमी मकान में सोकर
बेच लेता है सुबह पाँव के छाले कोई।
अब इसे ढाल न पाएँगी कभी टकसालें
दिल चवन्नी है हिफ़ाज़त से संभालें कोई।
सोच आँचों मे गले पर न ढले साँचों में
सोच को राह दे, साफ़ा न बना ले कोई।
जिस तरह आग मरे मुंह पे रखी जाती है
यूँ बुज़ुगों को खिलाए न निवाले कोई।
कैसे बच्चों के सवालों को अनसुना कर दे
कैसे ख़ुद को करे माज़ी के हवाले कोई।