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"हाय दुर्दशा मानवता की/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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− | हाय दुर्दशा मानवता की | + | '''हाय दुर्दशा मानवता की''' |
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हाय दुर्दशा मानवता की | हाय दुर्दशा मानवता की | ||
− | क्या से क्या रंग लायीं | + | क्या से क्या रंग लायीं? |
जिनके सीने पर सो बीती | जिनके सीने पर सो बीती | ||
− | शैशव की दोपहरी | + | शैशव की दोपहरी , |
जिनके कंधें पर चढ फूटी | जिनके कंधें पर चढ फूटी | ||
− | तुतलाती स्वर लहरी | + | तुतलाती स्वर लहरी, |
उनको बोझ समझ बैठी | उनको बोझ समझ बैठी | ||
− | मन तनिक नहीं | + | मन तनिक नहीं शरमायी । |
पले बढे जिनके हाथों से , | पले बढे जिनके हाथों से , | ||
− | खाकर नित्य | + | खाकर नित्य निवाले। |
जिनकी पूंजी से पढ लिखकर | जिनकी पूंजी से पढ लिखकर | ||
− | हुये कमाने वाले | + | हुये कमाने वाले, |
उनका तन ढकने को कपडें | उनका तन ढकने को कपडें | ||
− | लेने से | + | लेने से सकुचायी। |
जिनके अरमानें के संग संग | जिनके अरमानें के संग संग | ||
− | पल कर बडी हुयी थी | + | पल कर बडी हुयी थी , |
बैंयॉ बैंयॉ चनते चलते | बैंयॉ बैंयॉ चनते चलते | ||
− | उठकर खडी हुयी थी | + | उठकर खडी हुयी थी, |
उनके भूखे पेट रोटियां | उनके भूखे पेट रोटियां | ||
देने से कतरायी। | देने से कतरायी। | ||
हाय दुर्दशा मानवता की | हाय दुर्दशा मानवता की | ||
− | क्या से क्या रंग लायीं | + | क्या से क्या रंग लायीं? |
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17:36, 25 फ़रवरी 2011 का अवतरण
हाय दुर्दशा मानवता की
हाय दुर्दशा मानवता की
क्या से क्या रंग लायीं?
जिनके सीने पर सो बीती
शैशव की दोपहरी ,
जिनके कंधें पर चढ फूटी
तुतलाती स्वर लहरी,
उनको बोझ समझ बैठी
मन तनिक नहीं शरमायी ।
पले बढे जिनके हाथों से ,
खाकर नित्य निवाले।
जिनकी पूंजी से पढ लिखकर
हुये कमाने वाले,
उनका तन ढकने को कपडें
लेने से सकुचायी।
जिनके अरमानें के संग संग
पल कर बडी हुयी थी ,
बैंयॉ बैंयॉ चनते चलते
उठकर खडी हुयी थी,
उनके भूखे पेट रोटियां
देने से कतरायी।
हाय दुर्दशा मानवता की
क्या से क्या रंग लायीं?