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हार नहीं मानूँगा / गुलाब खंडेलवाल

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हार नहीं मानूँगा
बाज़ी एक हार भी जाऊं, और नयी ठानूँगा
 
गरजे व्योम, जलद घहरायें
कितनी भी हों क्रूर दिशायें
आयें, जो पवि-पाहन आयें
मैं सीना तानूँगा 
 
यह संसार भले ही छूटे
आस्था की दृढ डोर न टूटे
रूप रचा कितने भी झूठे
तुझको पहचानूँगा 

हार नहीं मानूँगा
बाज़ी एक हार भी जाऊं, और नयी ठानूँगा