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"हालत एक गरीब किसान की / हरियाणवी" के अवतरणों में अंतर

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हालत एक गरीब किसान की / कवि नरसिंह
 
हालत एक गरीब किसान की / कवि नरसिंह
  
कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का -
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कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का<br />
 
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ।  
 
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ।  
  
कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही -
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कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही<br />
हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।  
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हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।<br />
हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्यां कानी तैं टूट रही -
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हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्यां कानी तैं टूट रही<br />
 
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥  
 
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥  
  
चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का -
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चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का<br />
 
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥  
 
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥  
  
सारे पड़ौसी बाळकां खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे -
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सारे पड़ौसी बाळकां खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे<br />
दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।  
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दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।<br />
बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे -
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बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे<br />
मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥  
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मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥
  
एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का -
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एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का<br />
 
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥  
 
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥  
  
दोनूं बाळक खील-खेलणां का करकै विश्वास गये -
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दोनूं बाळक खील-खेलणां का करकै विश्वास गये<br />
मां धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।  
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मां धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।<br />
मां बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए -
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मां बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए<br />
 
फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।  
 
फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।  
  
तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का -
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तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का<br />
 
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥  
 
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥  
  
ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामां सौदा ना थ्याया -
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ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामां सौदा ना थ्याया<br />
भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !  
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भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !<br />
देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया -
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देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया<br />
 
छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।  
 
छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।  
  
कहै नरसिंह थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।  
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कहै नरसिंह थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।<br />
 
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
 
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

23:21, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

हालत एक गरीब किसान की / कवि नरसिंह

कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ।

कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही
हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।
हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्यां कानी तैं टूट रही
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥

चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥

सारे पड़ौसी बाळकां खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे
दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।
बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे
मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥

एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥

दोनूं बाळक खील-खेलणां का करकै विश्वास गये
मां धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।
मां बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए
फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।

तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामां सौदा ना थ्याया
भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !
देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया
छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।

कहै नरसिंह थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥