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हालत बड़े अजीब, दिल शाद नहीं / सांवर दइया
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हालत बड़े अजीब, दिल शाद नहीं।
देखता हूं आदमी आबाद नहीं!
वेद औ’ कुरान पढ़ने में मशगूल,
ज़िंदगी का पहला सबक याद नहीं!
आप फलें-फूलें, पर हमें न रौंदें,
देखिये हम आदमी हैं, खाद नहीं!
इसी तरह रहा जुल्म, जोर जब्र तो,
मिलेगा आदमी इसके बाद नहीं।
खुशहाली कैसे हो बयां ग़ज़ल में,
सबके लिए यहां पानी-घास नहीं।