भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाहिम में एक दिन / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:50, 14 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=उसका रिश्ता ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पहाड़ी नदी ने आमंत्रित किया था
किसी दिन आ जाओ
अपनी मशीनी दिनचर्या का दरवाज़ा खोलकर
किसी दिन भूलकर घड़ी की सरकती हुई सुइयों को
किसी दिन भूलकर शहर के बोझिल नियमों को
पहाड़ी नदी का संगीत सुनने के लिए गया था
पेड़ों की घुमावदार कतार के नीचे
सूखे पत्तों पर बैठकर होश गँवाने के लिए गया था
शिराओं में चौबीस घंटे प्रवाहित होने वाले तनाव को
छोड़ आया था शहर की सीमा पर
पहाड़ी नदी के सीने में चट्टानों की शृंखला थी
बाँस की नाव पर जा रहे थे कुछ माँझी
झूम की खेती कर रही थीं गारो लड़कियाँ
पहाड़ी नदी की टीस सीने में लेकर लौट आया था ।