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हिमालय के बाहरी अंचल में / कालिदास

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प्रालेयाद्रेरुपतटमतिक्रम्‍य तांस्‍तान्विशेषान्
     हंसद्वारं भृगुपतियशोवर्त्‍म यत्‍क्रौञ्वरन्‍ध्रम्।
तेनोदीचीं दिशमनुसरेस्तिर्यगायामशोभी
     श्‍याम: पादो बलिनियमनाभ्‍युद्यतस्‍येव विष्‍णो:।।

हिमालय के बाहरी अंचल में उन-उन दृश्‍यों
को देखते हुए तुम आगे बढ़ना। वहाँ क्रौंच
पर्वत में हंसों के आवागमन का द्वार वह
रन्‍ध्र है जिसे परशुराम ने पहाड़ फोड़कर
बनाया था। वह उनके यश का स्‍मृति-चिह्न
है। उसके भीतर कुछ झुककर लम्‍बे प्रवेश
करते हुए तुम ऐसे लगोगे जैसे बलि-बन्‍धन
के समय उठा हुआ त्रिविक्रम विष्‍णु का
साँवला चरण सुशोभित हुआ था।