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हुई है देर बहुत आपको भी आने में / कैलाश झा ‘किंकर’

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हुई है देर बहुत आपको भी आने में।
खुशी मिली है किसी को मुझे सताने में॥

नहीं किसी को भी हासिल से तोष मिलता है
समय गुज़रता नहीं जो उसी को पाने में।

तेरे ख़याल को सीने में दफ़्न करता हूँ
सफल नहीं मैं हुआ हूँ तुझे भुलाने में।

तुम्हीं तो लिखते रहे थे ग़रीब की बातें
तुम्हें भी बन्द किया किसने क़ैदख़ाने में।

भुला के फ़र्ज़ किसी पर भी दोष मढ़ देते
ये फ़ायदा तो हुआ है तुझे पढ़ाने में।

अवाम को भी जगाना है काम शायर का
उन्हीं के शेर जगे हैं फ़क़त जगाने में।