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हुवै रंग हजार (कविता) / सांवर दइया

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म्हैं आ कद कैवूं
म्हैं कोनी कथी आ बात –
थे-म्हैं एक !

पण
थां कनै पूगी जिकी बात
बा म्हारी कोनी
अरथ पछै कियां हो सकै म्हारो ?

जरूरत है इत्ती-सी बात जाणन री –
आ दुनिया है बाजार
अर हवा रा हुवै रंग हजार !