हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ / रज़ा लखनवी
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
उसे पे ज़ालिम नित नई तैयारियाँ
सादगी में आ गईं दिल-दारियाँ
फूल उठीं इक फूल में फुल-वारियाँ
मुत्तसिल तिफ़्ली से आग़ाज़-ए-शबाब
ख़्वाब के आग़ोश में बेदारियाँ
चारासाज़ों की वो क़ातिल ग़फ़लतें
दर्द-मंदों की वो ग़ैरत-दारियाँ
बस हुजूम-ए-शौक़ अब इस भीड़ में
खोई जाती हैं मिरी ख़ुद-दारियाँ
सोच कर उन की गली में जाए कौन
बे-इरादा होती हैं तैयारियाँ
उन की आँखों में भी आँसू आ गए
छोड़िए भी अब ग़रीब-आज़ारियाँ
दर्द-ए-दिल और जान-लेवा पुर्सिशें
एक बीमारी की सौ बीमारियाँ
और दिवाने को दीवाना बनाओ
अल्लाह अल्लाह इतनी ख़ातिर-दारियाँ
खींच देती हैं ख़त-ए-मौज-ए-शराब
मद-भरी आँखों में रंगीं धारियाँ
इश्क़ और ज़िदें ये रस्म ओ राह की
हाए दुनिया उफ़ री दुनिया-दारियाँ
बंध रहा है ऐ ‘रज़ा’ रख़्त-ए-सफ़र
हो रही हैं कूच की तैयारियाँ