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हे महाकाल / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
हे त्रिगुण-त्रिदेव-त्रिकाल
त्रिरुप-त्रिताप,
सहेजे हुए शान्त।
चैतन्य संचरित है
तुमसे इस अखिल
भुवन के प्रान्त-प्रान्त।
हे पंचतत्व के महाकोश!
हे सकल सृष्टि
के सूत्रधार!
हे तम-प्रकाश के सम स्वामी
किस भांति करुँ
वन्दन तेरा।
हे महाकाल!
तेरे चरणों में
शत-शत बार नमन मेरा।
इंगित से तेरे
बडे़-बडे़ गिरिराज
शून्यगामी होते।
अम्बुधि अथाह
जलराशि हीन होकर
मरुथल में हैं सोते।
तू चाहे
तब तक सुरमण्डल,
गरिमा मण्डित
है अमर-पुरी।
हे देवासुरर्ढक!
अनन्य चिर-भूषित
नन्दनवन तेरा
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
तेरे विश्वासों से
असंख्य ब्रह्मण्ड
फूटते बनते हैं
कितने ही इन्द्रधनुष तेरे
विराट हाथों में रहते हैं।
रवि शशि अनन्त तारामण्डल
तेरे सब खेल खिलौने हैं,
हर मधुर हास तेरा ही है
हर क्रन्दन है क्रन्दन तेरा।
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
वे विश्वजयी सम्राट,
रत्नमण्डित वे राजभवन भारी।
वन्दन जिनका दिगपाल
किया करते थे मुद मंगलकारी।
हो जाता सब कुछ ध्वस्त
भ्रकुटि लीला विलास
से पलभर में।
धरती आकाश
विनम्र सदा करते हैं
अभिनन्दन तेरा।
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
परिवर्तन
प्रतिपल परिवर्तन
हे काल तुम्हारा प्रमुख धर्म।
सर्वत्र व्याप्त हो एक तुम्हीं
तुम कर्ता-कारण-क्रिया-कर्म।
तुम जीवन के आधार एक
तुम महामृत्यु के हो स्वामी।
तुम पुरुष-प्रकृति के
विमल-रुप
 'एकोहं' आप्तकथन तेरा
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
द्वादश आदित्य,
लोक-पालक
एकादश रुद्र प्रलयकारी।
उन्चास मरुद्गण प्राणवाह वसुअष्ट सर्वविध हितकारी।
तेरे ही इंगित से समस्त
हो जाते सक्रिय और शान्त
हैं धन्य धरा के सुर नर मुनि करते नित पग वन्दन तेरा।
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
तुम आदि अन्त से रहित
सदा अव्यक्त व्यक्त भी हो रहते।
तुम तो द्रुतगामी धारा से
अविरल प्रवाह में हो बहते।
तुम नाम रूप से परे
महामर्यादाओं के सूक्ष्म रूप।
कर रहा सुगन्धित जग भर को
शुचि अंग-अंग चन्दन तेरा।
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
होते आलोकित लोक-लोक,
जब तुम मुस्कान सँजोते हो।
तम में विलीन हो जाता जग
जब नेत्र बन्द कर सोते हो।
यह रत्न जटित है नीलाम्बर
तेरे तन का शुभ आभूषण।
नूतन प्रभात है नही,
मधुर देदीप्यमान आनन तेरा।
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
तेरे विराट दाढोंमें पड़
युग कल्प हुए
कितने विलीन।
भौतिक वैभव का सहाराम
क्षण में होता अस्तित्वहीन।
तुम संज्ञाओं से परे
कल्पनाओं से भी हो बहुत दूर।
संगठित विवेक
सृष्टि भर का
कर सका न कुछ अंकन तेरा।
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।
तुम फूलों का मधुरिम सुवास
तुम कलियों की मुस्कान मधुर।
तुम ही गाम्भीर्य
नीरनिधि के
तुम ही धरती
के धैर्य-प्रचुर।
तुम ही प्राणों के महाप्राण,
तुम प्राणवायु के मृदु निर्झर।
कर रहे धरा-अम्बर
हर पल मंगलमय
यशगायन तेरा
हे महाकाल!
तेरे चरणों में शत-शत बार नमन मेरा।