भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
छो
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[ग़ालिब]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:गज़ल]]
+
|रचनाकार=ग़ालिब
[[Category:गा़लिब]]
+
}}
 +
[[Category:ग़ज़ल]]
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
+
<poem>
 +
हैरां हूँ, दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
 +
मक़दूर<ref>सामर्थ्य</ref> हूँ तो साथ रखूँ नौहागर<ref>मौत पर रोने वाला</ref> को मैं
  
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं <br>
+
छोड़ा न रश्क<ref>ईर्ष्या</ref> ने कि तेरे घर का नाम लूँ
मक़दूर हूँ तो साथ रखूँ नौहागर को मैं <br><br>
+
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं  
  
छोड़ा न रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूँ <br>
+
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
हर एक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं <br><br>
+
ऐ काश, जानता न तेरी रहगुज़र को मैं  
  
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार <br>
+
है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे
ऐ काश जानता न तेरी रहगुज़र को मैं <br><br>
+
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं  
  
है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे <br>
+
लो, वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम है  
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं <br><br>
+
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं  
  
लो वो भी कहते हैं कि ये बेनंग--नाम है <br>
+
चलता हूँ थोड़ी दूर हर-इक तेज़-रौ के साथ
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं <br><br>
+
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर<ref>पथ-प्रदर्शक</ref> को मैं
  
चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़ रौ के साथ <br>
+
ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश<ref>पूजा</ref> दिया क़रार
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं <br><br>
+
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगर<ref>निष्ठुर प्रिय</ref> को मैं
  
ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश दिया क़रार <br>
+
फिर बेख़ुदी में भूल गया, राह-ए-कू-ए-यार
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगार को मैं <br><br>
+
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं  
  
फिर बेख़ुदी में भूल गया राह-ए-कू-ए-यार <br>
+
अपने पे कर रहा हूँ क़यास<ref>अनुमान लगाना</ref> अहल-ए-दहर<ref>दुनिया वाले</ref> का
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं <br><br>
+
समझा हूँ दिल-पज़ीर<ref>दिल को लुभाने वाला</ref> मताअ़-ए-हुनर<ref>हुनर की दौलत</ref> को मैं
  
अपने पे कर रहा हूँ क़यास अहल-ए-दहर का <br>
+
"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़<ref>गर्व के घोड़े पर सवार</ref>  
समझा हूँ दिल पज़ीर मता-ए-हुनर को मैं <br><br>
+
देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर<ref>अली बहादुर - एक पीर</ref> को मैं
 
+
</poem>
"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़ <br>
+
{{KKMeaning}}
देखूँ अली बहादुर-ए-आलीगुहर को मैं <br><br>
+

18:19, 13 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

हैरां हूँ, दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मक़दूर<ref>सामर्थ्य</ref> हूँ तो साथ रखूँ नौहागर<ref>मौत पर रोने वाला</ref> को मैं

छोड़ा न रश्क<ref>ईर्ष्या</ref> ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं

जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
ऐ काश, जानता न तेरी रहगुज़र को मैं

है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं

लो, वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम है
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं

चलता हूँ थोड़ी दूर हर-इक तेज़-रौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर<ref>पथ-प्रदर्शक</ref> को मैं

ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश<ref>पूजा</ref> दिया क़रार
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगर<ref>निष्ठुर प्रिय</ref> को मैं

फिर बेख़ुदी में भूल गया, राह-ए-कू-ए-यार
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं

अपने पे कर रहा हूँ क़यास<ref>अनुमान लगाना</ref> अहल-ए-दहर<ref>दुनिया वाले</ref> का
समझा हूँ दिल-पज़ीर<ref>दिल को लुभाने वाला</ref> मताअ़-ए-हुनर<ref>हुनर की दौलत</ref> को मैं

"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़<ref>गर्व के घोड़े पर सवार</ref>
देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर<ref>अली बहादुर - एक पीर</ref> को मैं

शब्दार्थ
<references/>