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है ज़िन्दगी लगी हुई / हरिवंश प्रभात

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है ज़िन्दगी लगी हुई सलीब से,
तू दर्द को ना नापना ज़रीब से।

ये वक़्त तो गुज़र ही जाएगा मगर,
पुकार लेना मुझको भी क़रीब से।

कभी ख़ुशी कभी है ग़म तो क्या करें,
हैं ज़िन्दगी के मामले अजीब से।

मुख़ालिफ़त है यहाँ भाई से भी भाई को,
मगर गिला है मुझको तो रक़ीब से।

निभाना चाहता हूँ मैं ये उम्र भर,
मिला है प्यार जो बड़े नसीब से।

नहीं है बैर भी मुझे यह जानिए,
अमीर से नहीं किसी गरीब से।

प्यार की वह कैफ़ियत बताएँगे,
अगर ये पूछिए किसी अदीब से।