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है न आती बहार फूल भी नहीं खिलते / रंजना वर्मा
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है न आती बहार फूल भी नहीं खिलते
हम तो बस यूँ ही बियावां में भटकते चलते
ज़िन्दगी ने जो दिखाये थे मनाज़र हम को
खुदकुशी कर ही ली होती न अगर तुम मिलते
जो हैं भटके हुए उन को नजिन मिलती मंज़िल
है सिसकती शमा बस ऐसे ही जलते जलते
हम ग़मे हिज्र में हो गये मुब्तला इतने
मिलता हम को सुकून भी है तो मिलते मिलते
हमने हर जीस्त को देखा है फ़ना होते हुए
चाँद थक जाता आसमाँ में निकलते ढलते
हम ने दुनियाँ की हर इक शै से मुहब्बत की है
दर्द है दिल में लबों पर हैं तबस्सुम खिलते
चश्मे नम से कभी आँसू नहीं गिरने देंगे
तेरी यादों के हैं इन आँखों मे मोती पलते