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"होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर

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होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी<br>
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तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन<br>
 
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दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी कभी<br><br>
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दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब<br>
 
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तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन न था<br>
 
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी कभी<br><br>
 
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कुछ अपना होश था तुम्हारा ख़यल था<br>
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तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन<sup>4</sup> न था<br>
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी कभी<br><br>
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गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी<br><br>
[शब-ए-फ़ुर्क़त = जुदाई की रात]
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ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत के बावजूद<br>
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महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी<br><br>
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कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था<br>
[तर्क-ए-मुहब्बत = प्यार का तर्क]
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यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त<sup>5</sup> कभी-कभी<br><br>
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ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत<sup>6</sup> के बावजूद<br>
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महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी<br><br>
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1. वहशत = चिन्ता; 2. बरहम = बैचेन; 3. तुग़यानी = तूफ़ान; 4. मुतमईन = संतुष्ट; 5. शब-ए-फ़ुर्क़त = जुदाई की रात
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6. तर्क-ए-मुहब्बत = प्यार का तर्क

16:31, 7 जून 2009 का अवतरण

होती है तेरे नाम से वहशत1 कभी-कभी
बरहम2 हुई है यूँ भी तबीयत कभी-कभी

ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी

तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी

दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी

जोश-ए-जुनूँ में दर्द की तुग़यानियों3 के साथ
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी


तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन4 न था
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी


कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त5 कभी-कभी


ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत6 के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी

1. वहशत = चिन्ता; 2. बरहम = बैचेन; 3. तुग़यानी = तूफ़ान; 4. मुतमईन = संतुष्ट; 5. शब-ए-फ़ुर्क़त = जुदाई की रात 6. तर्क-ए-मुहब्बत = प्यार का तर्क