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होरी खेलन की सत भारी / प्रतापकुवँरि बाई

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होरी खेलन की सत भारी।
नर-तन पाव अरे भज हरि को सास एक दिन सारी।
अरे अब चेत अनारी।
ज्ञान-गुलाल अबीर प्रेम करि, प्रीत तणी पिचकारी।
लास उसास राम रँग भर-भर सुरत सरीरी नारी।
खेल इन संग रचा री।
उलटो खेल सकल जग खेलै उलटो खेलै खिलारी।
सतगुरु सीख धार सिर ऊपर सतसंगत चल जारी॥
भरम सब दूर गुपारी।
ध्रुव प्रहलाद विभीषण खेले मीरा करमा नारी।
कहै प्रतापकुँवरि इमि खेलै सो नहिं आवै हारी॥
साख सुन लीजै अनारी॥