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होली-14 / नज़ीर अकबराबादी

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हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार ।
जांफ़िशानी<ref>जान तोड़ कोशिश, पूर्ण प्रयत्न</ref> चाही कर जाती है होली की बहार ।।

एक तरफ़ से रंग पड़ता, इक तरफ़ उड़ता गुलाल ।
ज़िन्दगी की लज्ज़तें<ref>स्वाद, मज़ा, आनन्द, लुत्फ़</ref> लाती है, होली की बहार ।।

ज़ाफ़रानी<ref>केसर के रंग का, केसरी, केसर से बना हुआ</ref> सजके चीरा आ मेरे शाक़ी<ref>शिकायत करने वाला</ref> शिताब<ref>उतावली करने वाला</ref> ।
मुझको तुझ बिन यार तरसाती है होली की बहार ।।

तू बग़ल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ ।
तब तो मुझको यार ख़ुश आती है होली की बहार ।।

और जो हो दूर या कुछ ख़फ़ा<ref>नाराज़, रुष्ट, क्रुद्ध</ref> हो हमसे मियाँ ।
तो तो काफ़िर<ref>ईश्वरविरोधी, धर्मविरोधी</ref> हो जिसे भाती है होली की बहार ।।

नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम 'नज़ीर' ।
फिर बरस दिन के ऊपर जाती है होली की बहार ।।

शब्दार्थ
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