भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली के दिन दिल खिल जाते हैं / आनंद बख़्शी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
चलो सहेली
चलो रे साथी
ओ पकड़ो-पकड़ो
रे इसे न छोड़ो
अरे बैंया न मोड़ो
ज़रा ठहर जा भाभी
जा रे सराबी
क्या हो राजा
गली में आजा
होली रे होली
भंग की गोली
ओ नखरे वाली
दूँगी मैं गाली
ओ रामू की साली
होली रे होली

होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं
गिले शिक़वे भूल के दोस्तो दुश्मन भी गले मिल जाते हैं

गोरी तेरे रंग जैसा थोड़ा सा रंग मिला लूँ
आ तेरे गुलाबी गालों से थोड़ा सा गुलाल चुरा लूँ
जा रे जा दीवाने तू होली के बहाने तू छेड़ न मुझे बेशरम
पूच ले ज़माने से ऐसे ही बहाने से लिए और दिए दिल जाते हैं
होली के दिन दिल ...

यही तेरी मरज़ी है तो अच्छा तू ख़ुश हो ले
पास आ के छूना ना मुझे चाहे दूर से भिगो ले
हीरे की कनी है तू मोती की बनी है तू छूने से टूट जाएगी
काँटों के छूने से फूलों से नाज़ुक-नाज़ुक बदन छिल जाते हैं
होली के दिन दिल ...