भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"होली पिचकारी-15 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी  
 
|रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी  
 +
|संग्रह=नज़ीर ग्रन्थावली / नज़ीर अकबराबादी
 
}}
 
}}
[[Category:नज़्म]]
+
{{KKCatNazm}}
 
{{KKAnthologyHoli}}
 
{{KKAnthologyHoli}}
 
<poem>
 
<poem>

14:58, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण

हाँ इधर को भी ऐ गुंचादहन<ref>कली जैसे सुन्दर और चोटे मुँह वाली</ref> पिचकारी ।
देखें कैसी है तेरी रंगबिरंग<ref>रंग फेंकने वाली रंग बिरंगी</ref> पिचकारी ।।१।।

तेरी पिचकारी की तक़दीद<ref>स्वागत में</ref> में ऐ गुल हर सुबह ।
साथ ले निकले है सूरज की किरण पिचकारी ।।२।।

जिस पे हो रंग फिशाँ<ref>रंग छिड़का हुआ</ref> उसको बना देती है ।
सर से ले पाँव तलक रश्के चमन<ref>बगीचे की ईर्ष्या की पात्र</ref> पिचकारी ।।३।।

बात कुछ बस की नहीं वर्ना तेरे हाथों में ।
अभी आ बैठें यहीं बनकर हम तंग<ref>समान, पिचकारी के समान</ref> पिचकारी ।।४।।

हो न हो दिल ही किसी आशिके शैदा<ref>आशिक होनेवाले का, मुग्ध आशिक का</ref> का 'नज़ीर' ।
पहुँचा है हाथ में उसके बनकर पिचकारी ।।५।।

शब्दार्थ
<references/>