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हो गया ढेर पल में सुबाहु-मुख-बाहु-हीन / द्वितीय खंड / गुलाब खंडेलवाल

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हो गया ढेर पल में सुबाहु-मुख-बाहु-हीन
रथ, अश्व, पदातिक, सैन्य दिवातम-से विलीन
सागर के पार उड़ा शर खा मारीच दीन
जो बचे, फिरे छवि-क्षीण, पुन: लौटे कभी न
भूले भी आश्रम की दिशि
सज गये साज़ मंगल के तोरण-कलश-द्वार
नभ-सुमन-वृष्टि, मुनि करते वैदिक महोच्चार
'जय राम! अखिल जग-शक्ति-शील-सौन्दर्य-सार
त्रय-ताप-हरण, भव-शरण करण-कारण उदार
पा तुम्हें विगत माया-निशि
 
'तुम साधन-हीन दीन जन के रक्षक, त्राता
जन-जन के अंत:-स्रोत, शक्ति-शुभगति-दाता
आदर्श-चरित, जय! निगमागम-से युग भ्राता
हो निर्बल अबसे कहीं न कोई दुख पाता
तुम निर्धन के धन आये
'योगी ने देखा तुम्हें तुरीयावस्था धर
मुनि ने मन में, ऋषियों ने सृष्टि-व्यवस्था पर
घट-घट-वासी विभु तुम्हीं वैदिकों के ईश्वर
जय! मनुज-रूप, सुर-भूप, भक्त-भय-हर, सुखकर
तुम जग के जीवन आये
 
'मर्यादा जाग उठी धर्मों की लुप्त-प्राय
घर-घर में यज्ञ-हुताशन, समता, सत्य, न्याय
तुम आये प्रभु! बहुजन-हिताय, बहुजन-सुखाय
सन्देश धर्म का जिससे घर-घर फैल जाय
संसृति सब भाँति सुखी हो
'कोई न काम-रत, स्वेच्छाचारी, शक्ति-भीत
संकलित, संतुलित, जन-जन के जीवन विनीत
रण जड़ तत्वों में, क्रीड़ा, कौतुक, हार-जीत
सबको सम, सहज धरा के धन, हिम, ताप, शीत
जन एक कहीं न दुखी हो'