भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ेहन में कौन से आसेब का दर बाँध लिया / 'क़ैसर'-उल जाफ़री

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:00, 11 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='क़ैसर'-उल जाफ़री |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ेहन में कौन से आसेब का दर बाँध लिया
तुम ने पूछा भी नहीं रख़्त-ए-सफर बाँध लिया

बे-मकानी की भी तहज़ीब हुआ करती है
उन परिंदों ने भी एक एक शजर बाँध लिया

रास्ते में कहीं गिर जाए तो मजबूरी है
मैं ने दामान-ए-दरीदा में हुनर बाँध लिया

अपने दामन पे नज़र कर मेरे हाथों पे न जा
मैं ने पथराव किया तू ने समर बाँध लिया

घर खुला छोड़ के चुपके से निकल जाऊँगा
शाम ही से सर-ओ-सामान-ए-सहर बाँध लिया

उम्र भर मैं ने भी साहिल के कसीदे लिक्खे
मेरे बच्चों ने भी इक रेत का घर बाँध लिया

हार बे-दर्द हवाओं से न मानी ‘कैसर’
बाद-बाँ फेंक के कदमों से भंवर बाँध लिया