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अश्आर / मुनव्वर राना
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अभी मौजूद है इस गाँव की मिट्टी में ख़ुद्दारी[1]
अभी बेवा[2]की ग़ैरत[3]से महाजन हार जाता है
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मेरा ख़ुलूस[4]तो पूरब[5]के गाँव जैसा है
सुलूक[6]दुनिया का सौतेली माँओं जैसा है
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मालूम नहीं कैसी ज़रूरत निकल आई
सर खोले हुए घर से शराफ़त निकल आई
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वो जा रहा है घर से जनाज़ा [7]बुज़ुर्ग का
आँगन में इक दरख़्त[8]पुराना नहीं रहा
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