भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो नहीं रहे / संजय पुरोहित

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देह के भूगोल को
शब्दों में लिपटा
यौवनीय चितराम उभारने के बाद
प्रक़ति की सतरंगी आभा को
कूंची से उकेरने के पश्चाबत
ज्ञान की प्रवाहमयी सरिता
के गहन प्रवचनों के बाद
सरगम के नवीन प्रयोगों से
आहलादित होने के उपरान्ते
यदि
यदि कुछ क्षण मिले
तो मित्र
लिखना, कोरना, गा देना
या कि कह देना तुम
उनके बारे में
जो नहीं रहे
वो नहीं रहने के लिये
नहीं रहे बल्कि
नहीं रहे
ताकि तुम सिरजणरत रहो
बेखौफ, निश्चिंत रहो
कोरो, उकेरो, कहो, गाओ
करो वह सब
स्व च्छ न्द ता से

ऋण तो है मित्र
तुम पर
उनके निरन्ततर
न रहते रहने के कारण
सहुलियतें भोगने का
उऋण को ही सही
कुछ लिखना, कोर देना,
रच देना कुछ
या कि कह देना दो शब्दो
प्रिय मित्र
कुछ क्षण मिले तो
सोच भी लेना
उनके बारे में
जो नहीं रहे....