भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

(प्रथम कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:11, 28 फ़रवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे धर्म (प्रथम पद)

मेरे धर्म , मुझे अब तुम उदार होने दो,
निखिल विश्व में मिलकर अपनापन खोने दो,
खोने दो मुझे अछूत के साथ बैठकर,
जाने दो मुझको मुसलिम के घर के भीतर,
पीने दो मुझे ईसाई घर का पानी ।

(विराट ज्योति पृष्ठ 17)