भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

276 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जेहड़े पिंड विच आवे तां लोक पुछण एहतां जोगड़ा बालड़ा छोटड़ा ई
कन्नीं मुंदरां एस नूं ना फबन एहदे तेड़ ना बन्ने लंगोटड़ा ई
सत जनम के हमी हां नाथ पूरे कदे वाहया नहीओं जोतड़ा ई
दुख भंजन नाथ है नाम मैं तां घनंतर वैद दा पोतरा ई
जे कोई असां दे नाल दम मारदा ए एस जग तों जायगा औतरा ई
हीरा नाथ है वढा गुरदेव साडा चले उसदा पूजने चैतरा ई
वारस शाह जो आज्ञा लै साढी दुध पुतरां दे नाल सौतरा ई

शब्दार्थ
<references/>