भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"81 से 90 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 4" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=81 …)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKCatPad}}
[[Category:लम्बी रचना]]
+
 
{{KKPageNavigation
 
{{KKPageNavigation
|पीछे=81 से 90 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3
+
|पीछे=विनयावली / तुलसीदास / पद 81 से 90 तक / पृष्ठ 3
|आगे=पद 81 से 90 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5
+
|आगे=विनयावली / तुलसीदास / पद 81 से 90 तक / पृष्ठ 5
 
|सारणी=पद 81 से 90 तक / तुलसीदास
 
|सारणी=पद 81 से 90 तक / तुलसीदास
 
}}
 
}}

08:44, 17 जून 2012 के समय का अवतरण

पद 87 से 88 तक

( 87)

सुनु मन मूढ़ सिखावन मेरो।
हरि-पद-बिमुख लह्यो न काहु सुख, सठ! सह समुझ सबेरो।1।

बिछुरे ससि -रबि मन नैननितें, पावत दुख बहुतेरो।
 भ्रमत श्रमित निसि-दिवस गगन महँ, तहँ रिपु राहु बड़ेरो।2।

जद्यपि अति पुनीत सुरसरिता, तिहुँ पुर सुजस घनेरो।
तजे चरन अजहूँ न मिटत नित, बहिबो ताहू केरो।3।

छुटै न बिपति भजे बिनु रघुपति, श्रुति संदेहु निबेरो।
तुलसिदास सब आस छाँड़ि करि, होहु र