भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंतस् / विमलेश शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 20 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ऋण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम आना
जैसे तपन के बाद
बादल धरती की सुध लेते हैं
सूर्य किरण जैसे उठाती है
धरती से आसमां के पोर-पोर को
स्पर्श भर से
जैसे माँ का हाथ
माथे पर से उतरवा लेता है बोझ
और चेहरे की पीडा को
जैसे पुरवाई
भर देती है साँस-साँस में
हरेपन को
तुम आना
सजना माँग पर
सुख समय की ही तरह

तुम आना
एक दिन
सिर्फ़ मेरे लिए!