भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनमिट परछाईं / पुष्पिता

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 16 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> सूर्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूर्य को
सौंप देती हूँ तुम्हारा ताप
नदी को
चढ़ा देती हूँ तुम्हारी शीतलता
हवाओं को
सौंप देती हूँ तुम्हारा वसंत
फूलों को
दे आती हूँ तुम्हारा अधर-वर्ण
वृक्षों को
तुम्हारे स्पर्श की ऊँचाई
धरती को
तुम्हारा सोंधापन
प्रकृति को
समर्पित कर आती हूँ तुम्हारी साँसों की अनुगूँज
वाटिका में
लगा आती हूँ तुम्हारे विश्वास का अक्षय-वट
तुम्हारी छवि से
लेती हूँ अपने लिए अनमिट परछाईं
जो तुम्हारे प्राण से
मेरे प्राण में
चुपचाप कहने आती हैं
तुम्हारी भोली अनजीवी आकांक्षाएँ
तुम्हारे दिवस का एकांत एकालाप
तुम्हारी रातों का एकाकी करुण विलाप
मंदिर की मूर्ति में
दे आती हूँ तुम्हारी आस्था
ईश्वर में
ईश्वरत्व की शक्ति भर पवित्रता
तुमसे मिलने के बाद !