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अपनी अपनी ख़ूबियाँ और खामियाँ भी बाँट ले / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी

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अपनी अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें
शोहरतें तो बाँट लीं रुसवाइयाँ भी बाँट लें

बाँट लीं आसानियाँ, दुश्वावारियाँ भी बाँट लें
आओ अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें

बँट गया है घर का आँगन, खेत सारे बँट गए
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें

कल अगर मिल बाँट के खाए थे तर लुक्मे तो आज
आओ हम अपनी ये सूखी रोटियाँ भी बाँट लें

अपने हिस्से की ज़मीं तो दे चुके हमसाए को
अब बताओ क्या हम अपनी वादियाँ भी बाँट लें

दर्द, आँसू, बेक़रारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे
इश्क़ में हम अपनी-अपनी पारियाँ भी बाँट लें