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अलिखित आख्यान / अबीर खालिङ / सुवास दीपक

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इन्द्रधनुष सरीखे सप्तरंगी सपने
हमारे आँखों में संजोना सिखाकर
वे परियों सरीखी तितलियाँ
न जाने कहाँ लोप हो गईं ?

बेकसूर आँखों में सुन्दरता
और होठों पर शान्ति के गीत गाना सिखा कर
वे बुद्ध सरीखे परिन्दे
न जाने कहाँ विलुप्त हो गए ?

बहना, बहते जाना
मत सुनना तटों की किचकिच
मत भूलना काश-फूल के यौवन में
बचपन की चंचलता/ सरलता और
औदार्य का गायत्री मन्त्र
सीटी बजाकर कान में
पहाड़ी नदियाँ कहाँ सूख गईं ?

आलिंगनबद्ध हो खड़े होने का अर्थ
गलबहियाँ कर साथ-साथ
टहलने का आनन्द
हमें समझाने के बाद
वे ऋषितुल्य पेड़
न जाने कहाँ लोप हो गए ?

राम वनवास जाते हैं
कंक्रीट की बीहड़ में
और कुटी के इर्दगिर्द
चरते हैं आजकल रिसाइकल्ड प्लास्टिक हरिण
टीपू सुल्तान का पराक्रम तलाश कर
हैरान-परेशान है
जंगली बाघ का आदिम बाघपन ।

बाप की तरह खड़ा होता था बरगद टीले पर
और नीचे से आने वाला क्लान्त पथिकको
आलिंगनबद्धकर शीतलता बाँटता था
उसी की टहनियों पर बुलबुल
अपना घोंसला बनाकर
वासभूमि की कथा सुनाती थी
रिक्थ में देहदान कर कहाँ लोप हो गई ?

आजकल कंक्रीट के घनघोर जंगल में
बाघ, भालू, चीते, सिंह,
अजगर से भी डरावने जानवर
खून की प्यास में रास्ता रोक बैठे रहते हैं
स्वजनों के ।