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अस्त होती सदी / प्रभात कुमार सिन्हा
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सदी कांपती हुयी अस्त हो रही है
सागर में ठहाके लगाता वह
बार-बार कहता है -
'तुम्हारे सुरक्षा की जिम्मेवारी
मुझ पर है'
मेरा वह पहरेदार
अपनी मूंछों में मुस्कुराता हुआ
ठहर-ठहरकर मेरी ओर ही
तान देता है संगीन
मेरी थरथराती आवाज
इस तरह पहुँचती है मेरे रक्षक तक
जैसे बकरे की मिमियाहट
बूचर के पास
बेहद कोमल घास है आज
बकरे के आगे
उसकी पीठ को
सहला रही हैं बूचर की स्नेहिल हथेलियाँ
और सदी कांपती हुई अस्त हो रही है......