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अेक सौ चार / प्रमोद कुमार शर्मा
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काट-काट'र ओळ्यां
मुगत हूवणो चावै जुगत सूं
-स्याणा
कविता मांय बडी जाच लगावै
झूठ नैं सांप्रतै साच बतावै
इण वास्तै :
लीकां सूं हट'र चाल
हां-हूं छोड, नट'र चाल
पछै आपैई क्रांति हू ज्यासी
नींतर साथी देख लेई
सबद री दुनिया मांय भ्रांति हू ज्यासी
छोड राह
-पुराणा।