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आग-सी तपती जवानी छोड़कर मत जा पिया / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

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आग-सी तपती जवानी छोड़कर मत जा पिया।
रात बाकी है अभी मुख मोड़कर मत जा पिया।।

मस्तियाँ परवान पर हैं आज दोनों की यहाँ।
आ करें रंगीन दिल को तोड़कर मत जा पिया।।

आ उठायंे आज हम दोनों जवानी का मज़ा।
अब नहीं परदेश जा घर छोड़कर मत जा पिया।।

मै बरस इक्कीस की हूँ आप पचपन साल के।
हो भला कैसे मिलन कर जोड़कर मत जा पिया।।

जाल में मैं फँस गई अब हो किनारा किस तरह।
इस जवानी को तो यूं झकझोरकर मत जा पिया।।

दूर से आये सुनाने ग़ज़लगो अपनी ग़ज़ल।
बिन सुने जाना नहीं है, लौटकर मत जा पिया।।