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आज अपना दर्द हम किसको सुनाएँ / जगदीश पंकज

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आज अपना दर्द हम किसको सुनाएँ
पल रही सबके दिलों में वेदनाएँ

पुस्तकों से बन्द होते जा रहे हैं
लोग पढ़ पाते नहीं हैं भूमिकाएँ

आस्थाएँ मौन घुटती जा रही हैं
मुक्ति की धूमिल हुई संभावनाएँ

रात का आँचल पड़ा है भोर के मुख
ब्राह्म-वेला में कहो क्या गुनगुनाएँ

कोई कविता प्राण की कैसे सुनेगा
घिर रही चारों तरफ आलोचनाएँ

आज हम किससे कहें अपनी कहानी
मिल रही सबकी निराशक सूचनाएँ