भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी / अरविन्द यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:50, 22 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुश्किल हा गया है आज
समझना आदमी को
वैसे ही जैसे
नहीं समझा जा सकता है
बिना छुए, गर्म होना पानी का
बिना सूँघे, सुगन्धित होना फूल का
और बिना खाए स्वादिष्ट होना भोजन का
क्यों कि जैसे देखना
नहीं करता है प्रमाणित
पानी की गर्माहट
फूल की सुगन्धि
और स्वादिष्टता भोजन की
बैसे ही सिर्फ़ आदमी की शक्ल
नहीं करती है प्रमाणित
आदमी का आदमी होना।