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आपनोॅ जिनगी / बिंदु कुमारी

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दुनिया के मद-मोह तजी सब, जपैं गोपाल के नाम।
जौनें काटै दुःख के फंदा, बिन्दु, चंदा जग नाम।

करूणा के रोम-रोम में बसलोॅ, प्रभात गुण के खान।
आंगन के तुलसी छेकै करूणा, करूणा गीता-ज्ञान।

पाँच स्वरूप प्रकृति के, करूणा हेकरा जान।
हमरोॅ तोरोॅ बात यहां नै, गाबै वेद-पुराण।

अश्वमेघ यज्ञोॅ के घोड़ा, रोकै वीर मलखान।
फेनु सें जबेॅ एैतै चंदा, लौटी आपनोॅ धाम।

अग्नि परीक्षा होल्हौ पर, न´ रामोॅ के विश्वास।
सब गोतनी केॅ परीक्षे देतें, बीतै जीवन साँझ-विहान।