भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आवाज़ / आरती मिश्रा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 13 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दो ढाई बजे रात
जब सब सो रहे हैं
कुत्ते भी
मेरा मन करता है
ज़ोर की आवाज़ लगाऊँ
दसों दिशाओं को कँपा देनेवाली आवाज़
चुप्पियों को चीरकर रख देनेवाली
चाँद के गूँगेपन के ख़िलाफ एक आवाज़
इस घोर सन्नाटे को भंग करके मैं
परिणाम की प्रतीक्षा करना चाहती हूँ