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आस-पास / विमल राजस्थानी

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हमेशा खुश, न पल भर भी उदास रहता हूँ
वजह यह है कि ‘उसके’ आस-पास रहता हूँ

वहाँ ‘वह’ है नहीं जिस ठौर दुनियादारी है
फटकता भी नहीं, ‘उल्लु’ जहाँ सवारी है

अदब के दायरे ने उसको बाँध रखा है
अदीबों ने ही तो सोहबत का स्वाद चक्खा है

तराशे जो गये हैं लफ्ज गुल के होठों से
सदायें जो निकलती हैं दिलों के कोठों से

वहीं उस जानेमन का ‘चिर निवास’ रहता है
हमेशा खुश, नहीं पल भर उदास रहता है

नहीं मैं भी रहूँ क्यों खुश, सहास रहता हूँ
वजह यह है कि ‘उसके’ आस-पास रहता हूँ