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आहों की कहानी है अश्कों का फ़साना है / अनु जसरोटिया

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आहों की कहानी है अश्कों का फ़साना है
हस्ती जो हमारी है क्या उस का ठिकाना है

तुम झूट की नगरी में रहते हो ज़माने से
बरसों में कहीं जा कर हम ने तुम्हे जाना है

उतरा है कोई पंछी फिर दिल की मुंडेरों पर
फिर याद मुझे आया इक गीत पुराना है

शो'लों में भी झुलसे हैं अश्कों में भी भीगे हैं
इक अपने लहू में भी अब हम को नहाना है

तुम अपनी निगाहों से जिस को भी गिरा दो हो
फिर ऐसे अभागे का किस देस ठिकाना है

ये भीगी हुई रतियाँ, ख़ुशबू में बसी शामें
इस मौसमे-रंगीं से इक लम्हा चुराना है

क्या दाल गले अपनी, चोरों की है जब चाँदी
युग आया है ये कैसा, ये कैसा ज़माना है

रहने नहीं देंगे हम, धरती पे कोई रावण
हर झूट की नगरी को अब हम ने जलाना है

क्यों ध्यान भटकता है अब भी उन्हीं राहों में
जिन राहों में अब अपना आना है न जाना है

क्यों दाद न देंगे सब, शे'रों पे 'अनु' तुझ को
हर शे'र में जब बाँधा मज़मून सुहाना है।