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इलाही अब तो मुझ पर भी इनायत की नज़र कर दे / कांतिमोहन 'सोज़'

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जदीद इबादत<ref>आधुनिक प्रार्थना</ref>

इलाही अब तो मुझ पर भी इनायत की नज़र कर दे ।
करम कर दे मेरे मौला मेरे हाउस को घर कर दे ।।

घड़ी भर को मेरी तक़दीर बिजली की तरह चमके
किसी इटली के बाशिन्दे को मेरा भी ससुर कर दे ।

मुझे महरूम कर दे शौक़ से हुस्ने-दो आलम से
मगर बदले में स्विट्ज़रलैण्ड में बस एक लॉकर दे।

तेरा बन्दा हूं आख़िर मेरे पास एक ऐसा लश्कर हो
अगर मैं तेग़ मांगूं तो मुझे वो तोप लाकर दे ।

मैं बाक़ी ख़ुद भुगत लूँगा तू इतना काम करवा दे
मेरे जुर्मों की फाइल को किसी दिन लापता कर दे।

आता आईन ऐसा कर मुझे ऐसी अदालत दे
कोई हो मुददई वो मेरे हक़ में फ़ैसला कर दे ।

उसे या तो बना ऐसा कि सब उसके क़दम चूमें
वगरना सोज़ का सर उसके कान्धे से जुदा कर दे ।।

शब्दार्थ
<references/>