भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस मुहब्बत में कोई भाया नहीं / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:37, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस मुहब्बत में कोई भाया नहीं
था जिसे चाहा उसे पाया नहीं

धूप की नगरी में हैं हम आ गये
है शज़र का भी कहीं साया नहीं

बस बुजुर्गों की दुआ लेते रहो
इससे बढ़ के कोई सरमाया नहीं

जिंदगी इक इम्तेहां का नाम है
है जुदा मसला कि रास आया नहीं

आसमाँ में यूँ घिरी आती घटा
एक पल सूरज नज़र आया नहीं

जो यहाँ आया उसे जाना पड़ा
आबे जमजम पी कोई आया नहीं

हो रहीं थम थम के ऐसी बारिशें
तप रहे दिल ने सुकूँ पाया नहीं