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उजड़ी रात का जुगनू / वैशाली थापा

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कराहती, पथराई
भीगी हुयी दर्द में
इंतज़ार में डूबी हुयी
सहमी हुई डर से
उदासीनता से बंजर
बन्धनों के अतिरेक से बोझल
जीवनयात्रा से थकी हुई
मौत से भरी हुई

रात तुम उतरना
धीरे-धीरे ही सही
हर उजड़ी हुयी आँख में
हर आँख को नसीब हो
उसके हिस्से की नींद
इतना ख़्याल रखना।